Premanand Maharaj प्रेमानंद महाराज का संदेश: राधा नाम के जाप से जीवन के सभी कष्टों से मिलती है मुक्ति
4 सितंबर 2024, वृंदावन: राधा केलीकुंज के महंत और प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने अपने अनुयायियों को हाल ही में एक सत्संग के दौरान राधा नाम के जाप के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि राधा नाम में एक विशेष शक्ति है जो किसी भी संसारिक शक्ति में नहीं है। यदि आप भवसागर से पार होना चाहते हैं, तो लाडली जी के नाम का स्मरण करें।
प्रेमानंद महाराज ने राधा रानी के भक्तों को बताया कि यदि आप 108 बार राधा नाम का जाप करें, तो नर्क से मुक्ति प्राप्त होती है। उनका कहना है कि राधा नाम जपने से कृष्ण का मार्ग मिलता है और संसार की मोह-माया से छुटकारा मिलता है। राधा नाम से जीवन के सभी कष्ट समाप्त हो जाते हैं। महाराज जी ने राधा नाम को केवल एक नाम नहीं, बल्कि मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग बताया। उन्होंने कहा कि जो भी व्यक्ति सच्चे मन से राधा रानी का नाम जप करता है, उसकी तक़दीर बदल जाती है। लाडली जी इतनी कृपालु हैं कि वह अपने भक्त को कभी हताश नहीं देख सकतीं।
महाराज जी ने सत्संग में कहा कि जब आप निराश महसूस करें और सब कुछ खत्म लगता है, तो अपनी आंखें बंद करके कृष्ण की प्रीतिमा का स्मरण करें। उन्होंने बताया कि राधा इतनी दयालु हैं कि वे अपने भक्त को गिरने से उठाती हैं। जब भी राधा रानी का स्मरण करें, तो अपने सभी चिंताओं और दुखों को उनके चरणों में अर्पित कर दें।
प्रेमानंद महाराज ने यह भी कहा कि एक समय ऐसा आएगा जब राधा नाम जप के बिना आपका मन नहीं लगेगा। राधा रानी अपने भक्तों को अपने हृदय में समाहित कर उन्हें मुक्ति प्रदान करती हैं। राधा नाम के जाप से न केवल मानसिक शांति मिलती है बल्कि जीवन के सभी कष्ट भी दूर होते हैं।
प्रेमानंद महाराज के इस उपदेश ने राधा रानी के भक्तों को एक नया दृष्टिकोण प्रदान किया है और जीवन की कठिनाइयों से पार पाने का मार्ग दिखाया है। वे आज के समय के एक प्रसिद्ध संत हैं, और उनके भजन और सत्संग में दूर-दूर से लोग आते हैं। प्रेमानंद महाराज की भक्ति और साधना की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली हुई है।
प्रेमानंद जी महाराज का जन्म उत्तर प्रदेश के कानपुर में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका बचपन का नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे था। उनके परिवार में भक्तिभाव का माहौल था, जिसने उनके जीवन को गहरे प्रभावित किया। 13 साल की उम्र में उन्होंने संन्यास लेने का निर्णय लिया और घर का त्याग कर संन्यासी जीवन की शुरुआत की। वे वृंदावन आकर राधारानी और श्री कृष्ण के चरणों में समर्पित हो गए और भगवद प्राप्ति में लग गए।