कुछ क्षेत्रों में चुनाव की जरूरत नहीं, क्यों कहा उपराष्ट्रपति धनखड़ ने, जानें
16 अक्टूबर 2024, जयपुर– भारत, जिसे दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र माना जाता है, में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में आने वाले वक्त की गम्भीर चुनोती को लेकर एक बयान दिया है। इस विषय पर उन्होने गम्भीर चिंता जाहिर की, उन्होंने कहा है कि देश के कुछ विशेष हिस्सों में चुनाव और लोकतंत्र का कोई मतलब नहीं रह गया है। उनकी इस बात के पीछे की वजह चिंताजनक है, जो जनसांख्यिकी में हो रहे नाटकीय परिवर्तनों से जुड़ी है।
धनखड़ का मानना है कि ऐसे क्षेत्रों में राजनीतिक परिस्थितियां इतनी बदल चुकी हैं कि वहां चुनाव परिणाम पहले से तय होते हैं। उनका यह बयान राजनीतिक स्वार्थ और जनसांख्यिकीय बदलावों पर गहरी चिंता को दर्शाता है। जयपुर में एक चार्टर्ड अकाउंटेंट्स सम्मेलन में बोलते हुए, उन्होंने कहा कि कुछ इलाके “राजनीतिक किले” में तब्दील हो गए हैं, जहां चुनाव का कोई वास्तविक अर्थ नहीं रह गया है।
जनसांख्यिकीय बदलाव: एक गंभीर चुनौती
उपराष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि ये जनसांख्यिकीय परिवर्तन केवल स्थानीय मुद्दा नहीं है, बल्कि यह राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर भी चिंता का विषय बनता जा रहा है। उन्होंने कहा, “यदि इस गंभीर चुनौती से व्यवस्थित तरीके से नहीं निपटा गया, तो यह एक अस्तित्वगत संकट बन सकता है।” उनका इशारा उन देशों की ओर था जिन्होंने जनसांख्यिकीय विकार के कारण अपनी पहचान खो दी है।
धनखड़ ने इस मुद्दे को परमाणु बम के समान गंभीर बताया, जिससे जनसांख्यिकीय विकारों के दुष्परिणामों को समझा जा सके। उन्होंने बिना किसी विशेष देश का नाम लिए कहा कि कुछ विकसित देशों ने इस चुनौती को महसूस किया है और यह स्थिति उन देशों के लिए भी गंभीर बन सकती है जो इसे नजरअंदाज कर रहे हैं।
चुनावों का अर्थ खत्म होता हुआ
उपराष्ट्रपति ने बताया कि भारत में कुछ क्षेत्रों में चुनाव आने पर जनसांख्यिकीय अव्यवस्था लोकतंत्र में राजनीतिक अभेद्यता के गढ़ का रूप ले रही है। उन्होंने कहा, “हमने यह देखा है कि कई इलाके अब एक राजनीतिक गढ़ बन गए हैं, जहां चुनाव का कोई अर्थ नहीं रह जाता। परिणाम पहले से ही तय होते हैं, और यह स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण है।”
इस संदर्भ में, उन्होंने सामाजिक सामंजस्य को लक्ष्य बनाकर चल रहे नैरेटिव और प्रयासों के प्रति भी चेतावनी दी। उपराष्ट्रपति ने कहा कि समाज में एकता स्थापित करना अनिवार्य है, और इसके लिए सभी को एकजुट होकर काम करना होगा।
एक समावेशी समाज की आवश्यकता
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत की संस्कृति की समावेशिता और विविधता महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा, “हमारी संस्कृति में एकता है, जो सभी के लिए स्वागत योग्य है। लेकिन, आज हम देख रहे हैं कि इसे जाति, पंथ और अन्य कारकों के आधार पर विभाजित किया जा रहा है। यह गंभीर रूप से हमारी सामाजिक व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर हम इस चुनौती का सामना नहीं करते हैं, तो यह स्थिति और गंभीर हो जाएगी। “हमें एक ऐसा समाज बनाने की दिशा में काम करना होगा जो राष्ट्रवादी सोच रखता हो और जाति, पंथ, रंग या संस्कृति के आधार पर विभाजित न हो,” उन्होंने कहा।
बहुसंख्यकता का महत्व
उपराष्ट्रपति ने भारतीय बहुसंख्यकता की सकारात्मकता का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि हम सहिष्णु और समावेशी हैं, लेकिन इसके विपरीत, कुछ तत्व समाज में विभाजन और क्रूरता को बढ़ावा दे रहे हैं। “हमें एक ऐसे खुशनुमा इकोसिस्टम की दिशा में काम करना चाहिए जो सभी मूल्यों का सम्मान करे,” उन्होंने निष्कर्ष निकाला।
इस तरह, उपराष्ट्रपति धनखड़ ने देश की राजनीतिक और सामाजिक संरचना पर गहरा चिंतन करने की आवश्यकता पर जोर दिया, ताकि हम एक मजबूत और एकजुट समाज का निर्माण कर सकें।