जम्मू कश्मीर सदन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व नहीं के बराबर,पार्टियों के दावे हकीकत से कोसों दूर
जम्मू, 10 अक्टूबर 2024- ज्योतिका कादंबी -महिलाएं समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, और हाल ही में जम्मू-कश्मीर में हुए चुनावों ने इस महत्व को और भी उजागर किया है। ऐतिहासिक रूप से कम प्रतिनिधित्व वाली महिलाओं ने इस बार अभूतपूर्व संख्या में मतदाता और उम्मीदवार के रूप में भाग लिया।
भारत के चुनाव आयोग के अनुसार, चुनावों में कुल 63.88% मतदान हुआ। यह उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में चुनाव लड़ने वाली महिला उम्मीदवारों की संख्या 2014 के विधानसभा चुनावों की तुलना में 57% बढ़ी है। अंतिम चरण में मतदाताओं की भागीदारी 69.69% तक पहुंच गई, जिसमें महिला मतदाताओं की संख्या 70.02% रही, जो पुरुषों के 69.37% मतदान से अधिक है।
90 सीटों के लिए कुल 873 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा, जिनमें से 43 महिलाएं थीं। यह 2014 से एक उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है, जब 87 विधानसभा क्षेत्रों के लिए 831 उम्मीदवारों में से केवल 28 महिलाओं ने चुनाव लड़ा था। हालांकि, परिणाम घोषित होने के बाद, चुनाव लड़ने वाली 43 में से केवल 3 महिला उम्मीदवार ही जीत सकीं। जम्मू और कश्मीर में महिलाओं की आबादी लगभग 46% है, लेकिन इन चुनावों में उनका प्रतिनिधित्व असमान रूप से कम रहा। महिला उम्मीदवारों ने कुल उम्मीदवारों का केवल लगभग 5% हिस्सा बनाया, जबकि पुरुषों का दबदबा 95% था। जम्मू-कश्मीर चुनाव में कुल 873 उम्मीदवारों में से केवल 43 महिला उम्मीदवार जिसमे से 3 ने जीत दर्ज की वहीं 2014 में केवल 2 महिला उम्मीदवार पहुंची थीं विधानसभा।
43 महिला उम्मीदवारों में से 21 ने निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा, जो कि पार्टी समर्थन में लैंगिक असमानता को दर्शाता है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आईएनसी) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से केवल एक महिला उम्मीदवार को पार्टी का टिकट मिला, जबकि समाजवादी पार्टी (एसपी) ने दो और जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय कांग्रेस (एनसी) ने 3 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा।
भारत में महिलाओं की संख्या लगभग 48% है जिसमे से केवल 14.7 % ही संसद में प्रतिनिधित्व कर रही है जो की एक बहुत कम संख्या है।
ये स्थिति हमें जम्मू और कश्मीर में भी देखने को मिली जहा पहले से ज्यादा अंक में महिलाओं ने अपनी भागीदारी दिखाई , पर वह तब भी महिलाओं की संख्या के तुलना में कम है ।
जैसे-जैसे महिलाएं संगठित होकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही हैं, वैसे-वैसे अधिक न्यायसंगत राजनीतिक परिदृश्य की ओर बढ़ना आसान होता जा रहा है। चुनावी प्रक्रियाओं में महिलाओं को सशक्त बनाना न केवल लोकतंत्र को मजबूत करता है, बल्कि समग्र रूप से समाज को भी समृद्ध बनाता है।