RAHUL GANDHI(राहुल गांधी) के ‘नाच-गाना’ बयान पर संत समाज का कड़ा विरोध
28 सितंबर 2024, अयोध्या: हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के द्वारा अयोध्या में हुए राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह को “नाच-गाना” कहे जाने के बाद संत समाज में भारी आक्रोश फैल गया है। यह विवाद उस समय पैदा हुआ जब राहुल ने हरियाणा में विधानसभा चुनाव के दौरान अपने बयान में इस समारोह की आलोचना की। उनका यह बयान न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला माना गया, बल्कि इससे कांग्रेस पार्टी को भी निशाने पर लिया गया।
राहुल गांधी ने अपने बयान में कहा, “राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में नाच-गाना हो रहा था। वहां अमिताभ बच्चन जैसे फिल्मी सितारे और उद्योगपति अंबानी और अडानी को बुलाया गया था। लेकिन क्या किसी बढ़ई, किसान या मजदूर को वहां देखा गया?” राहुल का यह बयान धार्मिक आयोजन को एक शो-भा के रूप में पेश करता है, जिससे संत समाज और भाजपा नेताओं में नाराजगी फैल गई।
राम मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास ने राहुल के इस बयान को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि कांग्रेस हमेशा से भगवान राम के अस्तित्व को नकारती रही है। उन्होंने कहा, “जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। यदि राहुल जी प्राण प्रतिष्ठा को नौटंकी समझते हैं, तो यह उनकी सोच को दर्शाता है।” संतों ने इस प्रकार के बयानों को धार्मिक आस्था के प्रति अपमानजनक बताया और राहुल की मानसिकता पर सवाल उठाए।
विश्व हिंदू प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के मीडिया इंचार्ज शरद शर्मा ने भी राहुल गांधी के बयान की निंदा की। उन्होंने कहा, “राहुल की पार्टी राम के अस्तित्व को ही नकारती है। ऐसी भाषा का प्रयोग समाज के लिए हानिकारक है। यह दिखाता है कि वह विदेशी मानसिकता से ग्रस्त हैं और उन्हें सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है।”
भाजपा नेता अपर्णा यादव ने भी इस मुद्दे पर टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “राहुल गांधी को अपनी बात कहने से पहले यह समझना चाहिए कि उनके परिवार में तीन-तीन प्रधानमंत्री रहे हैं, लेकिन उन्होंने कभी इस प्रकार का अपमान नहीं किया।” अपर्णा ने राहुल को माफी मांगने की सलाह दी और कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री या रामलला पर कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।
यह मामला केवल एक बयान तक सीमित नहीं है; यह भारतीय राजनीति में धार्मिक भावनाओं के प्रति संवेदनशीलता को भी दर्शाता है। भारतीय समाज में धार्मिक भावनाएं गहरी जड़ें रखती हैं, और ऐसे बयानों से केवल राजनीतिक नुकसान नहीं होता, बल्कि समाज में विभाजन भी बढ़ता है।
इस प्रकार के विवादों से यह स्पष्ट होता है कि नेताओं को अपने शब्दों का चयन सावधानी से करना चाहिए, खासकर जब बात धार्मिक आस्था की होती है। राहुल गांधी का यह बयान न केवल उनकी पार्टी के लिए चुनौती बन गया है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारतीय राजनीति में धार्मिक मुद्दे कितने संवेदनशील होते हैं।
आखिरकार, संत समाज और राजनीतिक नेताओं का यह संघर्ष केवल विचारधारा की लड़ाई नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और धार्मिकता की गहराई को भी उजागर करता है। नेताओं को चाहिए कि वे ऐसे मामलों में सावधानी बरतें और समाज की भावनाओं का सम्मान करें।