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22nd December 2024

Mental Healthबच्चों की मोबाइल लत से बढ़ रही मानसिक समस्याएं: समय रहते उपाय करें

Mental Healthबच्चों की मोबाइल लत से बढ़ रही मानसिक समस्याएं: समय रहते उपाय करें

मोबाइल फोन, टीवी, टैबलेट और कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स बच्चों को वर्चुअल ऑटिज्म की ओर धकेल रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, इन गैजेट्स के अत्यधिक उपयोग से बच्चों में आटिज्म के लक्षण बढ़ रहे हैं और उनकी सामाजिक संचार और व्यवहार क्षमताओं पर नकारात्मक असर पड़ रहा है।

जब बच्चे रोते हैं या किसी चीज़ के लिए जिद करते हैं, तो अक्सर माता-पिता उन्हें शांत करने के लिए मोबाइल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स दे देते हैं। यह आदत बहुत सामान्य हो गई है, जिससे बच्चों को घंटों स्क्रीन के सामने बिताने की लत लग जाती है।

वैश्विक शोध बताते हैं कि कम उम्र में बच्चों को फोन देने से उनका मानसिक विकास प्रभावित होता है। इसके अतिरिक्त, रिपोर्ट के अनुसार, मोबाइल, गैजेट्स, और टीवी देखने की लत बच्चों के भविष्य को खतरे में डाल रही है, जिससे वर्चुअल ऑटिज्म का खतरा बढ़ रहा है।

वर्चुअल ऑटिज्म क्या है?

वर्चुअल ऑटिज्म के लक्षण आमतौर पर चार से पांच साल तक की उम्र के बच्चों में देखे जाते हैं। यह स्थिति अक्सर मोबाइल फोन, टीवी, और कंप्यूटर जैसे इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के अत्यधिक उपयोग के कारण उत्पन्न होती है। स्मार्टफोन, लैपटॉप, और टीवी पर अधिक समय बिताने से बच्चों को बोलने में कठिनाई और सामाजिक इंटरैक्शन में समस्याएँ होने लगती हैं।

दिल्ली के बीएलके मैक्स हॉस्पिटल की पीडियाट्रिशियन डॉ. रजनी फरमानिया के अनुसार, “इस स्थिति को वर्चुअल ऑटिज्म कहते हैं। इसका मतलब है कि बच्चों को वास्तविक ऑटिज्म नहीं होता, लेकिन उनमें इसके लक्षण विकसित हो जाते हैं। यह विशेष रूप से एक से तीन साल की उम्र के बच्चों में देखे जा रहे हैं। माता-पिता जब बच्चों को मोबाइल देते हैं, तो वे उन्हें इसके लिए लत लगाने के बजाय वास्तविक शिक्षा और खेल से दूर कर देते हैं।”

बच्चों को मोबाइल से दूर रखें

डॉ. रजनी ने सलाह दी, “दो साल तक के बच्चों को मोबाइल और गैजेट्स से पूरी तरह दूर रखना चाहिए। दो से पांच साल के बच्चों को थोड़ी बहुत टीवी देखने की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन यह माता-पिता के साथ मिलकर देखना चाहिए ताकि लत न लगे। मोबाइल देना बच्चों के लिए हानिकारक हो सकता है।”

माता-पिता को भी अपनी आदतें बदलनी चाहिए

डॉ. रजनी ने कहा, “बच्चों को फोन और टीवी से दूर करने के साथ-साथ उनका स्क्रीन टाइम कम करना और उनके सोने के पैटर्न को सुधारना आवश्यक है। कोरोना महामारी के दौरान बच्चों में आउटडोर एक्टिविटीज की कमी और मोबाइल की लत बढ़ गई है। माता-पिता को भी अपने फोन उपयोग की आदतें सुधारनी चाहिए और बच्चों के सामने मोबाइल का उपयोग कम से कम करना चाहिए।”

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार और अन्य जगहों पर वर्चुअल ऑटिज्म के मामलों में पिछले एक दशक में तीन से चार गुना वृद्धि देखी गई है। हालांकि, आनुवंशिकी एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन छोटे बच्चों में मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग भी इसका बड़ा कारण बन रहा है।

क्यों बढ़ रहा है वर्चुअल ऑटिज्म?

हाल के वर्षों में, माता-पिता ने बच्चों का मन बहलाने के लिए उन्हें मोबाइल फोन और अन्य गैजेट्स देना शुरू कर दिया है, जिससे बच्चे वर्चुअल दुनिया में डूबने लगे हैं। इसके अलावा, सिंगल-न्यूक्लियर परिवारों का बढ़ता प्रचलन और पारिवारिक संवाद की कमी भी इस समस्या को बढ़ा रही है।

बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. रश्मि मदान के अनुसार, “ऑटिज्म एक ऐसी स्थिति है जिसका कोई ज्ञात इलाज नहीं है, लेकिन पर्सनैलिटी डेवलपमेंट थेरेपी, स्पीच थेरेपी, और स्पेशल एजुकेशन थेरेपी से बच्चों की स्थिति में सुधार हो सकता है।”

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