I Want to Talk-अभिषेक बच्चन के अद्भुत अभिनय और बॉलीवुड की एक मास्टरपीस है शुजित सरकार की नई फिल्म
‘सिंघम अगेन’ और ‘भूल भुलैया 3’ जैसी बड़े बजट की फिल्मों के बीच, निर्देशक शुजित सरकार ने ऐसी फिल्म पेश की है जो शांति और गहरे एहसास का अनुभव कराती है। यह एक सर्वाइवल कहानी है, जो केवल दुःख नहीं, बल्कि विश्वास का संदेश भी देती है। शुजित सरकार ने जिस कुशलता से इस कहानी को प्रस्तुत किया है, वह प्रशंसा के योग्य है। इसके साथ ही, अभिषेक बच्चन का दमदार प्रदर्शन इस फिल्म को विशेष बनाता है, जिससे यह एक बार देखे जाने योग्य अनुभव बन जाता है।इस फिल्म की समीक्षा की युवा पत्रकार मो० आदिल शमीम ने आईये जानते है विस्तार से ….
कहानी-कहानी अर्जुन (अभिषेक बच्चन) की है, जो आईआईटी और एमबीए की डिग्री रखता है। वह अमेरिका में अपने सपने पूरे कर रहा है। उसने जीवन में काफी कुछ पाया है और बड़ा कुछ करने की आशा से मेहनत कर रहा है। पर अचानक से उसकी जिंदगी में भूचाल आ जाता है। डॉक्टर उसे बताते हैं कि उसे ‘लाइरेंजियल कैंसर’ है और उसके पास जीने को 100 दिन से कम वक्त है। अर्जुन की नौकरी छिन जाती है। जिंदगी के उलट-फेर में उसे कई सर्जरी करवानी पड़ती हैं। अर्जुन एक बच्ची का पिता भी है, और उसे अपनी जिम्मेदारियां निभानी हैं। यह कहानी उसी अर्जुन की है जिसके पास 100 से कम दिन बचे हैं, पर वह जिंदा रहने को मौत को भी उलझाता है और उसे अपने हिसाब से मोड़ता है। इस पेंच को समझने को आपको फिल्म देखनी होगी।
एक्टिंग-अभिषेक बच्चन की एक्टिंग मे इस बार कुछ नया नजर आ रहा है, जो उन्हे पहले से और बेहतर बनाता है उनका अभिनय करने का तरीका पापा अमिताभ के पीकू और पा के बीमार बच्चे वाले किरदार के आसपास से गुजरता है वे कॉपी नही करते, लेकिन एक एक्टिंग के महारथी के रूप मे उनके अंदर पापा की झलक दिखाई देती है वही, उनकी बेटी के रूप मे अहिल्या बमरू ने भी अच्छा काम किया है उन्हे देखकर ऐसा लगेगा कि बहुत दिनो बाद कोई ताज़ और नया टैलेंट देखने को मिला है। फिल्म के बाकी के अभिनेताओं का अभिनय भी काफी सराहनीय रहा है, जो फिल्म को मास्टरपीस बनाने में मदद करती है।
डायरेक्शन और राइटिंग-फिल्म का निर्देशन शुजित सरकार ने किया है, जिन्होंने पहले ‘अक्टूबर’ सरदार उद्यम, मद्रास कैफेऔर ‘पीकू’ जैसी बेहतरीन फिल्में बनाई हैं। ये फिल्में भी जीवन से भरी हुई थीं। इस फिल्म में भी शुजित अपनी पुरानी फिल्मों की हल्की सी खुशबू बनाए रखते हैं, जो फिल्म के अनुभव को और भी बढ़ा देती है। फिल्म में रितेश शाह की शानदार लेखनी देखने को मिलती है। उन्होंने ने पहले भी मदारी और पिंक जैसी फिल्मों को लिखी है।
समीक्षात्मक विश्लेषण-कुल मिलाकर, शूजित सरकार ने एक बार फिर हमारी भावनाओं को छुआ है। उन्होंने आशा और लचीलेपन की कहानी पेश की है, जिसमें एक ऐसा पात्र है जो अपनी किस्मत को चुनौती देने का निश्चय करता है। क्या अर्जुन अपनी बेटी की शादी में नाचने के लिए जिंदा रहेगा? यह सवाल फिल्म के अंत तक हमारे दिमाग में घूमता रहता है। सच्ची कहानी और इसकी शानदार प्रस्तुति, हमारे नायक के जीवन की उथल-पुथल के बीच पर्दे पर लगातार शांति मन को सुकून देने वाला हल्का संगीत और दमदार अभिनय – ये सब इसे एक उत्कृष्ट फिल्म बनाते हैं।
क्या इस फिल्म को देखना चाहिए?
आप सभी को इस फिल्म को एक बार देखनी चाहिए, ये फिल्म आप अपने परिवार के साथ भी देख सकते हैं। इस फिल्म को मेरे तरफ़ से 3.5 रेटिंग्स 5 में से।