ALLAHABAD HC (इलाहाबाद हाई कोर्ट) का बड़ा फैसला-धार्मिक स्वतंत्रता का मतलब धर्मांतरण की आजादी नहीं
14 अगस्त, 2024 प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने धार्मिक स्वतंत्रता और धर्मांतरण पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने एक लड़की के जबरन धर्मांतरण और यौन शोषण के आरोपी की जमानत याचिका को खारिज करते हुए यह स्पष्ट किया कि धार्मिक स्वतंत्रता का मतलब दूसरों को धर्मांतरण कराने का अधिकार नहीं है।
कोर्ट का आदेश और संविधान की व्याख्या
हाई कोर्ट की जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि संविधान हर व्यक्ति को अपने धर्म को मानने, पालन करने और उसका प्रचार करने का मौलिक अधिकार देता है। हालांकि, इसे धर्मांतरण के सामूहिक अधिकार के रूप में नहीं समझा जा सकता। धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार केवल व्यक्ति के लिए है और इसका मतलब किसी को धर्मांतरण के लिए मजबूर करना नहीं है।
मामला और आरोप
यह मामला बदायूं जिले में दर्ज किया गया था, जहां आरोपी अजीम पर एक लड़की को जबरन इस्लाम अपनाने और यौन शोषण का आरोप है। आरोपी ने दावा किया था कि उसे झूठा फंसाया गया है और लड़की ने स्वेच्छा से अपना घर छोड़ा था। लेकिन कोर्ट ने पाया कि लड़की ने सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दिए गए बयान में आरोपी के खिलाफ आरोप बनाए रखा था।
हाई कोर्ट का निर्णय
हाई कोर्ट ने पाया कि आरोपी ने धर्मांतरण के लिए लड़की पर दबाव डाला और उसे इस्लामी अनुष्ठान करने के लिए मजबूर किया। कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने जमानत के लिए कोई ठोस भौतिक साक्ष्य पेश नहीं किया कि उसने विवाह से पहले किसी आवेदन के माध्यम से लड़की को इस्लाम में परिवर्तित किया था।